October 15, 2025

नोबेल शांति पुरस्कार 2025 — वेनेज़ुएला की ‘आयरन लेडी’ मारिया कोरीना माचाडो को मिला सम्मान

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महात्मा गांधी से ली प्रेरणा, तानाशाही के अंधेरे में लोकतंत्र की मशाल जलाई

आजाद भारत न्यूज़ डेस्क।
वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता और लोकतंत्र की मज़बूत आवाज़ मारिया कोरीना माचाडो को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया है। नॉर्वे की नोबेल कमेटी ने उनके अदम्य साहस, लोकतंत्र के प्रति समर्पण और शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए यह सम्मान दिया।

माचाडो ने वर्षों तक अपने देश में तानाशाह निकोलस मादुरो की सत्ता के खिलाफ अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया। जेल, उत्पीड़न और निर्वासन जैसी कठिन परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद उन्होंने लोकतंत्र की मशाल जलाए रखी।

गांधी के विचारों से प्रेरित संघर्ष

मारिया माचाडो ने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा है कि महात्मा गांधी उनके लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
उन्होंने कहा था — “सत्य और अहिंसा केवल भारत की धरोहर नहीं, बल्कि पूरी मानवता का रास्ता हैं।”

गांधीजी की ही तरह माचाडो ने हिंसा का रास्ता नहीं चुना, बल्कि शांतिपूर्ण विरोध और जनजागरण के माध्यम से लोगों को संगठित किया। उनके आंदोलनों में महिलाओं, युवाओं और छात्रों की बड़ी भागीदारी रही।

तानाशाही के खिलाफ आवाज़

वेनेज़ुएला में वर्षों से चल रही राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट के बीच माचाडो विपक्ष की प्रमुख आवाज़ बनकर उभरीं।
उन्होंने चुनावी धांधली, पत्रकारों की गिरफ्तारी और मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाई।
इस संघर्ष के कारण उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया, राजनीतिक प्रतिबंध लगाए गए, और परिवार से अलग रहना पड़ा — लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

उनका कहना था — “लोकतंत्र कोई उपहार नहीं, यह संघर्ष से कमाया जाता है।”

नॉर्वे की नोबेल कमेटी का संदेश

नोबेल कमेटी ने अपने बयान में कहा —

“मारिया माचाडो ने यह साबित किया है कि सच्ची शांति ताकत से नहीं, साहस से जन्म लेती है।”

जब दुनिया के कई ताकतवर नेता यह पुरस्कार पाने की उम्मीद कर रहे थे, तब एक महिला ने शांतिपूर्ण संघर्ष से साबित कर दिया कि बदलाव की सबसे बड़ी ताकत जनता और उसकी इच्छाशक्ति होती है।

महिला शक्ति का प्रतीक

मारिया कोरीना माचाडो आज न केवल वेनेज़ुएला की बल्कि पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन गई हैं।
उनकी कहानी हर उस महिला को हिम्मत देती है जो अन्याय और दमन के खिलाफ लड़ रही है।

उनका नाम अब इतिहास के उन स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया है जो याद दिलाते हैं —

“तानाशाह चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, एक सच्ची औरत का साहस हमेशा उससे बड़ा होता है।”

आजाद भारत न्यूज़
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