आजाद भारत न्यूज़ लाइव रिपोर्ट- खोंगसरा (बिलासपुर), 27 जुलाई 2025
खोंगसरा क्षेत्र में एक हिरण की मौत के बाद वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के दिशा-निर्देशों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। पोस्टमार्टम से पहले शव जलाने की तैयारी, पेट्रोल का इस्तेमाल, फील्ड से महीनों से गायब कर्मचारी, और ग्रामीणों के आक्रोश ने इस घटना को एक गंभीर प्रशासनिक चूक बना दिया है।
हिरण की मौत और वन विभाग की सुस्ती
26 जुलाई की सुबह एक हिरण मृत अवस्था में मिला। ग्रामीणों ने तत्काल वन विभाग को सूचना दी, लेकिन कई घंटे बाद कर्मचारी घटनास्थल पर पहुंचे। बताया गया कि खोंगसरा परिक्षेत्र के कर्मचारी कई महीनों से कार्यालय और फील्ड से अनुपस्थित थे। जो स्थानीय वन क्षेत्र में पदस्थ हैं, घटना के बाद ही आनन-फानन में नजर आए। घटना न होती तो आते भी नही।
बिना जांच,पोस्टमार्टम के जलाने की थी तैयारी थी, पत्रकारों के सवालों पर मचा हड़कंप।
वन विभाग ने बिना प्राथमिक जांच और पोस्टमार्टम के शव को जलाने की तैयारी कर ली थी, लेकिन जब स्थानीय पत्रकारों ने इस गैरकानूनी प्रक्रिया पर सवाल उठाए, तब शव को वापस कार्यालय लाया गया। वहां रातभर रखा गया, जो फिर से गंभीर लापरवाही का उदाहरण था।
पोस्टमार्टम खुले में, ग्रामीणों के सामने – क्या यही है वन्यजीव की मर्यादा?
अगले दिन रेंजर देवसिंह मरावी और कोटा से आए पशु चिकित्सक अनिमेष अग्रवाल ने बिना घटनास्थल पर पहुंचे, वन विभाग कार्यालय परिसर में ही हिरण का खुले में पोस्टमार्टम किया। समूचे गांव सैकड़ो लोग और मीडिया की उपस्थिति में यह प्रक्रिया हुई, जो स्पष्ट रूप से NTCA और MoEFCC की गाइडलाइन के खिलाफ है। वन्यजीव को काटते सभी ने देखा।
फिर पेट्रोल डालकर जलाया शव – फॉरेंसिक साक्ष्यों से छेड़छाड़? रेंजर ने कहा बारिश है पेट्रोल से ही जलेगा।
पोस्टमार्टम के बाद वनकर्मियों ने पेट्रोल डालकर हिरण के शव को जला दिया, जबकि कानून के अनुसार केवल लकड़ी व चूने के माध्यम से वैज्ञानिक तरीके से दफन या नियंत्रित जलाने की अनुमति है। इससे मौत के कारण से जुड़े साक्ष्य नष्ट होने की संभावना है।
वन्यजीव को जलाने, पेट्रोल पहले से डिब्बे में भरा हुआ
ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों में गुस्सा – पूछताछ में घिरे अफसर
पोस्टमार्टम के दौरान पहुंचे पशुपालन विभाग के अधिकारी से ग्रामीणों ने घेरकर सवाल किए:
“आप कहां रहते हैं? हमारे जानवर मरते हैं, आप कभी नजर नहीं आते।” जमील खान (पशुपालक)
इस पर अधिकारी ने जवाब दिया:
“मैं जूनियर डॉक्टर हूं, प्रभारी के रूप में आया हूं। शासन को कहिए, मैं इसके लिए उत्तरदायी नहीं हूं।” (अनिमेष जैसवाल) अधिकारी- पशु चिकित्सा विभाग कोटा)
राजू सिंह राजपूत (अध्यक्ष, भाजपा मंडल बेलगहना) का बयान:
“यह अत्यंत दुखद और निंदनीय घटना है। वन विभाग की लापरवाही के चलते ऐसा हुआ। जो कर्मचारी फील्ड में नहीं रहते, उन्हें तत्काल निलंबित या बर्खास्त किया जाना चाहिए। मैं स्वयं इस मामले को वनमंत्री के समक्ष उठाऊंगा।”
ग्रामीणों की मांगें: क्षेत्र को हिरण जोन घोषित किया जाए,
स्थानीय लोगों ने कहा कि क्षेत्र में हिरणों की संख्या तेजी से बढ़ी है और इसके संरक्षण के लिए इसे “हिरण जोन” घोषित किया जाए। साथ ही उन्होंने स्थायी वन विभाग स्टाफ, जागरूकता अभियान, और स्थाई फील्ड बैरियर की भी मांग की।
आजाद भारत के साथ जनप्रतिनिधि
कानून क्या कहता है?
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9, 50, 51 के तहत संरक्षित वन्यजीव की मौत पर लापरवाही, साक्ष्य नष्ट करना या गैरकानूनी दाह संस्कार दंडनीय अपराध है।
दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।
प्रथम दृष्टि जांच:
पशु चिकित्सक द्वारा सैंपल जब्त किए गए हैं, जिन्हें जबलपुर प्रयोगशाला भेजा गया है। प्रारंभिक जांच में कुत्तों या अन्य जानवरों द्वारा हमले की आशंका जताई गई है।
रेंजर और स्टाफ को कानून और गाइडलाइंस की जानकारी नही?? विभाग में जानवरों की देखरेख और उनके अंतिम संस्कार की प्राक्रिया की जानकारी की कमी, पंचनामा से लेकर, दाह संस्कार तक सभी प्रक्रियाओ में उठा सवाल??
आजाद भारत न्यूज़ को साक्षात्कार देते रेंजर-मरावी जी।
यह घटना न सिर्फ वन्यजीवों की सुरक्षा पर सवाल उठाती है, बल्कि प्रशासन की जवाबदेही और पारदर्शिता की भी परीक्षा है। क्या वन विभाग अपने ही बनाए कानूनों का पालन करेगा, या यह मामला भी फाइलों में दफन हो जाएगा – इसका जवाब आने वाला समय देगा।
निश्छल शुक्ला-(SDO कोटा डिविजन) घटना की जानकारी मिलते ही मैंने टीम को घटना स्थल पर भेजा है। जांच कर आगे कार्यवाही की गयी है। स्टाफ की अनुपस्थिति की शिकायत जनप्रतिनिधियों से मिली है। नोटिस जारी कर कार्यवाही की गई है।