October 16, 2025

शिक्षा विभाग के अजब-गजब कारनामे : बेटी से मध्यान्ह भोजन, दामाद कर रहा स्कूल में नशे में ड्यूटी!

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बालिका से मध्यान्ह भोजन बनवाने का मामला—बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना की धज्जियां,शिक्षा विभाग की लापरवाही: नोटिस थमाकर मामले को रफा-दफा करने की परंपरा जारी।

चुरेली/केंदा (कोटा बिलासपुर छत्तीसगढ़)
प्रदेश की सरकार पहले से ही हड़ताल, खाद संकट, अवैध रेत उत्खनन और जल-जंगल-भूमि सरीखे मुद्दों से घिरी हुई है। ऐसे में कोटा ब्लॉक के सरकारी स्कूलों से सामने आई ताज़ा तस्वीरों ने शिक्षा विभाग की कार्यशैली और स्कूलों की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ पर सवाल

चुरेली स्कूल में प्रधान पाठक द्वारा 14 वर्षीय बच्ची से मध्यान्ह भोजन बनवाने का मामला सामने आया है। बालिका से रसोई का काम करवाना न केवल बाल श्रम और सुरक्षा मुद्दों से जुड़ा है, बल्कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना की धज्जियाँ उड़ाने जैसा है। बताया गया कि भोजन सामग्री को जमीन पर रखकर उसी पर झाड़ू और कचरा फेंका जा रहा है, और वही बच्चों को परोसा जाता है।

शिक्षक की जगह दामाद की “शराबी ड्यूटी”

आमागार प्राथमिक स्कूल का हाल इससे भी विचित्र है। यहां बीते दो सालों से पैरालाइज शिक्षक की जगह उनका दामाद स्कूल में ड्यूटी कर रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि यह व्यक्ति अक्सर शराब के नशे में बच्चों के बीच आता है। अब सोचने वाली बात यह है कि ऐसे माहौल में बच्चों की शिक्षा का स्तर क्या होगा?बालिकाओं को शाला भेजने डर का माहौल है।

BEO पर सवाल और संरक्षण की चर्चा

जब शिकायतें खंड शिक्षा अधिकारी तक पहुँचीं तो उनका जवाब था – “मैं आकर देखता हूं।” लोगों का कहना है कि शिकायतों का नतीजा सिर्फ नोटिस थमाने तक सीमित रह जाता है। यही कारण है कि शिक्षकों को पढ़ाने से ज्यादा “नोटिस का जवाब देने” में महारत हासिल हो चुकी है।
ग्रामीणों ने BEO नरेंद्र मिश्रा पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि उनकी शह और संरक्षण के चलते ऐसी लापरवाहियाँ निरंतर बढ़ रही हैं। चाहे मामला शराब सेवन का हो, बच्चों से काम कराने का या स्कूल में देरी से आने का—हर बार मामला दबा दिया जाता है।

सरकारी स्कूलों की सच्चाई

ग्रामीणों का कहना है कि सरकारी शिक्षक खुद अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाते हैं। वजह साफ है—उन्हें पता है कि सरकारी स्कूलों की स्थिति कितनी खराब है।
ज्यादातर शिक्षक लेटलतीफ़ी और जल्दबाज़ी में अपनी “औपचारिक ड्यूटी” पूरी कर दिन खत्म करते हैं।

भ्रष्टाचार का संदेह ?? और जनता का गुस्सा

ग्रामीणों का आरोप है कि शिक्षा विभाग की हर शिकायत का निपटारा भ्रष्टाचार और समझौते में हो जाता है। नतीजा यह कि बच्चों की पढ़ाई दांव पर लग रही है। अब ग्रामीण खुले तौर पर पूछ रहे हैं—
“जिन पर ज़िम्मेदारी है वही लापरवाह और संदिग्ध हों, तो हमारे बच्चे अच्छी शिक्षा कैसे पाएंगे?”

सरकार की चुनौती

यह पूरा मामला केवल शिक्षा अव्यवस्था का नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और प्रणालीगत लापरवाही से जुड़ा है। अब देखना है कि विभाग और सरकार कब तक आँख मूँदकर सिर्फ नोटिस देने की रस्म निभाती रहेगी, या फिर वास्तव में ठोस कार्रवाई होगी।इससे पूर्व विकासखंड शिक्षा अधिकारी पर भ्रष्टाचार का आरोप की फाइल अभी बंद नही हुई। फिर वही परंपरा आगे जारी है।

— आज़ाद भारत न्यूज़ लाइव

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