
जगदलपुर, बस्तर — आज बस्तर ने एक बार फिर आस्था, परंपरा और संस्कृति की भव्य मिसाल पेश की। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथयात्रा के साथ यहां का प्रमुख धार्मिक पर्व गोंचा महोत्सव धूमधाम से आरंभ हुआ। दोपहर को परंपरागत तुपकी (तोप) की गूंज के साथ यह दिव्य यात्रा प्रारंभ हुई।
🔸 नेत्रोत्सव पूजन के तहत भगवान के नेत्रों पर काजल लगाया गया और उन्हें दर्पण दिखाया गया — यह रस्म उनके पुनर्जागरण का प्रतीक मानी जाती है।
🔸 इस पावन अवसर पर 360 घरों के आरण्यक ब्राह्मण समाज की महिलाएं विशेष परिधान में शामिल हुईं और गर्भगृह में भोग व श्रृंगार सामग्री अर्पित की गई।
🔸 कुल 22 मूर्तियों को तीन भिन्न-भिन्न रथों में प्रतिष्ठित किया गया, जिनकी रथ संचालन की जिम्मेदारी केवल पुजारियों और सेवकों को सौंपी गई।
🔸 बस्तर की गोंचा परंपरा की जड़ें राजशाही काल से जुड़ी हैं और इसे पुरी रथयात्रा के बाद देश का इकलौता ऐसा पर्व माना जाता है, जहां तीनों देवताओं के भव्य रथ एक साथ निकाले जाते हैं।
यह रथयात्रा न केवल बस्तर की धार्मिक चेतना का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाती है कि किस प्रकार आस्था, परंपरा और सामाजिक सहभागिता आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक आत्मा में जीवित हैं।
📸 हजारों श्रद्धालुओं ने इस पावन क्षण को कैमरे में कैद किया, और पूरे नगर में उल्लास और भक्ति का माहौल छा गया।