August 2, 2025

अधूरा पुल, कीचड़ से सने रास्ते और जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते बच्चे- संघर्ष की राह न जाने कब होगी खत्म ?

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खोंगसरा/कोटा (बिलासपुर) से आज़ाद भारत न्यूज़ विशेष रिपोर्ट

“वो शिक्षा का सपना देखते हैं, लेकिन रास्ता कांटों से भरा है — कभी कीचड़, कभी नदी की धार, और कभी अधूरा पुल।”


कोटा विकासखंड के मोहली पंचायत के अंतर्गत आने वाला छोटा सा परंतु संघर्षों से भरा गांव लठौरी, जहां रहने वाले बैगा जनजाति के बच्चे, हर दिन अरपा नदी को पार कर विद्यालय पहुँचने के लिए अपनी जान को दांव पर लगाते हैं।

गांव के समीप बन रहा अरपा नदी पर पुल, इन बच्चों और ग्रामीणों की उम्मीद की एक किरण था, जो अधूरा रह गया। पंचायत मोहली तक नहीं है मुख्य मार्ग, कीचड़ में फंसी विकास की गाड़ी

गांव से पंचायत मोहली तक जाने के लिए कोई पक्का मुख्य मार्ग नहीं है। बरसात के मौसम में हालात और भी खराब हो जाते हैं — रास्ते में घुटनों तक कीचड़, फिसलन और पानी भरे गड्ढे किसी भी आपदा को न्योता दे रहे हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि पैदल चलने वाले बच्चों के जूते तक कीचड़ में धंस जाते हैं, और कभी-कभी बच्चे गिरकर चोटिल भी हो जाते हैं।

शिक्षा के लिए हर रोज़ संघर्ष

प्राथमिक शाला लठौरी में कक्षा 1 से 5 तक की पढ़ाई होती है। इसके बाद की पढ़ाई के लिए बच्चों को माध्यमिक शाला आमागोहन या मोहली जाना पड़ता है। इसके लिए उन्हें पहले अरपा नदी को पार करना पड़ता है — बिना पुल, बिना नाव, बिना किसी सुरक्षा के।

बरसात के समय नदी का जलस्तर बढ़ने से यह रास्ता और भी खतरनाक हो जाता है। कई बार बच्चों को लौटना पड़ता है, तो कई बार जोखिम उठाकर वे पढ़ाई का सपना ज़िंदा रखते हैं।

स्थानीय शिक्षक, स्थानीय प्रयास

शिक्षक सुरेश बैगा और संतोष बैगा जैसे समर्पित स्थानीय शिक्षक इस विद्यालय को पूरे मनोयोग से संचालित कर रहे हैं। वे न सिर्फ पढ़ाते हैं, बल्कि बच्चों के अभिभावकों को भी लगातार प्रेरित करते हैं कि बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखें, चाहे राह कितनी भी कठिन क्यों न हो। स्थानीय शिक्षक अपना पूरा समय शाला के लिए देते है।

अधूरा पुल – अधूरी व्यवस्था

ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों की वर्षों की मांग पर अरपा नदी पर पुल निर्माण का कार्य शुरू तो हुआ, लेकिन वह अब वर्षों से अधर में लटका है। न तो काम पूरा हो रहा है, और न ही वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था।
यह पुल यदि बन जाता है, तो न केवल बच्चों की पढ़ाई आसान होगी, बल्कि बाजार, बैंक, पोस्ट ऑफिस, अस्पताल और बस सुविधा तक पहुंच भी सुगम हो जाएगी।

बाढ़ का डर, कटती ज़मीन

अरपा नदी हर बरसात में रौद्र रूप लेती है। कुछ वर्ष पूर्व आई बाढ़ में लठौरी गांव जलमग्न हो गया था, ग्रामीणों ने प्राथमिक शाला के भवन की छत पर चढ़कर अपनी जान बचाई थी।
शिक्षक सुरेश बैगा बताते हैं कि हर वर्ष नदी किनारे की ज़मीन कट रही है, और यदि यही हाल रहा, तो आने वाले वर्षों में गांव का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

प्रशासन से मांग और सुझाव

1. लोक निर्माण विभाग को चाहिए कि वह अधूरे पुल निर्माण को शीघ्रता से पूर्ण करे।

2. पंचायत मोहली तक पक्का मुख्य मार्ग बनाया जाए, जिससे बच्चों और ग्रामीणों को कीचड़ व जोखिम भरे रास्तों से राहत मिल सके।

3. बरसात के समय नदी पार करने वाले बच्चों के लिए अस्थायी नाव या निगरानी व्यवस्था की जाए।

4. जनमन योजना के अंतर्गत लठौरी जैसे आदिवासी बहुल गांवों को प्राथमिकता देकर विशेष सहायता और विकास योजनाओं का संचालन किया जाए।

5. शिक्षा विभाग द्वारा नदी पार कर स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए छात्रावास या ट्रांजिट व्यवस्था की जाए।

अधिकारियों को कभी इस गांव की ओर देखने की फुर्सत नहीं मिली, लेकिन इन बच्चों की आंखों में आज भी उम्मीदें चमकती हैं। वे कीचड़ से भरे रास्ते पार कर, नदी के उफान से लड़कर भी शिक्षा की लौ जलाए हुए हैं।
अब जरूरत है कि सरकार और प्रशासन उस लौ को बुझने न दे।

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